अनुभूति 161/48
641
सुन कर मेरी प्रेम-कहानी
साथी ! तुमको क्या करना है?
कर्ज किसी का मेरे सर पर
आजीवन जिसको भरना है।
642
कसमे वादे प्यार वफ़ा सब
जब तुमने ही भुला दिया है
मैने भी अपनी चाहत को
थपकी दे दे सुला दिया है ।
643
जो भी करना खुल कर करना
द्वंद पाल कर क्या करना है
दुनिया की तो नज़रें टेढ़ी
दुनिया से अब क्या करना है ।
644
सत्य नहीं जब सुनना तुमको
और तुम्हे क्या समझाऊँ मैं
झूठ तुम्हे सब लगता है तो
चोट लगी क्या दिखलाऊँ मैं।
-आनन्द.पाठक-
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