शुक्रवार, 21 मार्च 2025

अनुभूतियाँ 163

  अनुभूतियाँ 163/50


649

कभी प्रेम का ज्वार उठा है

कभी दर्द के बादल छाए ।

जीवन भर मैने जीवन को

मिलन-विरह के गीत सुनाए ।


650

चाहे जितना अँधियारा हो

एक रोशनी मन के अन्दर

सतत जला करती रहती है

राह दिखाती रहती अकसर


651

तीर कमान लिए हाथों में

काल, व्याध बन बैठा छुप कर

इक दिन तो जद में आना है

कब तक रह पाओगे बच कर।


652

साँस साँस पर कर्ज उसी का

वही साँस में  घुला हुआ है ।

 मन रहता आभारी उसका

सतगुण से जो धुला हुआ है ।


-आनन्द.पाठक-


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