मंगलवार, 22 अप्रैल 2025

दोहा 14

 दोहे 14


'जग ही सच"- माना किया, कितना मै अनजान ।
वह तो थीं परछाइयाँ , हुआ बाद में ज्ञान ।।

वक्त वक्त की बात है, जब भी बदले चाल।
कल के धन्ना सेठ भी, आज हुए कंगाल ।।

बडे लोग सुनते कहाँ, मत कर इतनी आस ।
अपनी बाहों पर सदा,  करता रह विश्वास ।।

राहों में काँटे पड़े, कभी न बोले शूल ।
लेकिन खुशबू बोलती, किधर खिले हैं फूल ।।

जो भी तेरा धर्म हो, जो भी तेरी सोच ।
मानवता के काम में, मत कर तू संकोच ।।

शीश महल वाले खड़े, उन लोगों के साथ ।
साजिश में शामिल रहे, लेकर पत्थर हाथ ।।

मीठा मीठा बोलता, चेहरा है मासूम ।
अन्दर लेकिन विष भरा, दुनिया को मालूम ॥


-आनन्द पाठक-

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