मुक्तक 17 : समंदर से
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221---2121---1221---212
बस आप की झलक से ही चढ़ता सुरूर है
क्या इश्क़ है? अदब है, मुजस्सम शुऊर् है
हुस्न-ओ-जमाल यूं तो इनायत ख़ुदा की है
किस बात का हुज़ूर को इतना गुरूर है ।
221---2121---1221---212
बस आप की झलक से ही चढ़ता सुरूर है
क्या इश्क़ है? अदब है, मुजस्सम शुऊर् है
हुस्न-ओ-जमाल यूं तो इनायत ख़ुदा की है
किस बात का हुज़ूर को इतना गुरूर है ।
2/22
2122----2122---2122---2122
2122----2122---2122---2122
इन्क़लाबी मुठ्ठियाँ तू खींच कर एलान कर दे
एक तिनके को ख़ुदा चाहे तो फिर जलयान कर दे
गर हवा सरमस्त भी हो क़ैद कर सकता है तू
हौसला दिल में जगा कर राह तू आसान कर दे ।
एक तिनके को ख़ुदा चाहे तो फिर जलयान कर दे
गर हवा सरमस्त भी हो क़ैद कर सकता है तू
हौसला दिल में जगा कर राह तू आसान कर दे ।
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1222 1222 1222 1222
कभी लगता है, आने को ,अचानक आ के उड़ जाती
जहाँ ख्वाबों को गाना था वहाँ पीड़ा स्वयं गाती
अजब क्या चीज है यह नींद जो आँखों में बसती है
जब आनी है तो आती है, नहीं आनी, नहीं आती
4/21
2122 2122 2122 212
आप हैं ईमां मुजस्सम, बेइमां हम भी नहीं
आप खुदमुख्तार हैं तो बेनिशाँ हम भी नहीं
यह शराफत है हमारी आप की सुन गालियाँ
चुप हैं हम,वरना सुनाते बेजुबां हम भी नहीं।
-आनन्द पाठक-
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