बह्र-ए-मुज़ारि’अ मुसम्मन अख़रब महज़ूफ़
मफ़ऊलु----फ़ाइलातु---मफ़ाईलु---फ़ाइलुन221-----------2121-------1221--------212
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एक ग़ज़ल
मोहन की बाँसुरी की अमर तान है ग़ज़ल
कोयल की कूक जैसी मधुर गान है ग़ज़ल
जैसे कि माँ की गोद में बच्चा हो सो रहा
होंठो पे एक तैरती मुसकान है ग़ज़ल
मानो कमल के फूल पे दो बूँद शबनमी
ठहरी हुई हो , छूने की अरमान है ग़ज़ल
जीवन की साधना में ऋचा मन्त्र-सा लगे
जैसे ऋषी -मुनी की गहन ध्यान है ग़ज़ल
यह वस्ल-ए-यार की ही फ़क़त दास्तां नही
आशिक़ की चाक चाक गिरेबान है ग़ज़ल
चाहे ग़ज़ल हो ’मीर’ की ,’ग़ालिब’ की,दाग़ की
बाब-ए-हयात की बनी उनवान है ग़ज़ल
वो पूछते हैं मुझ से ग़ज़ल कौन सी बला ?
’आनन’ ये मेरी जान है ,ईमान है ग़ज़ल
-आनन्द.पाठक-
[modified 27-07-2020]
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