शनिवार, 27 मार्च 2021

ग़ज़ल 03


 पंडित ने कहा इधर से है मुल्ला ने कहा इधर से है
हम बीच खड़े हैं दोनों के तेरे घर की राह किधर से है


नफ़रत का धुँआ उठा करता अपनो का ही दम घुटता है
इस बंद मकाँ के कमरे में कहो रोशनदान किधर से है


सब भटके भूल-भूलैया में जंत्री में पोथी पतरा में
जो प्रेम की राह निकलती है उस दिल का का राह किधर से है


मथुरा से हैं ?काशी से हैं ? उज्जैनी हैं ? अनिवासी हैं ?
हर तीर्थ पे पण्डे पूछ रहे 'बोलो जजमान किधर से हैं ?


जो दान-पुण्य करना कर दो पुरखे तो इसी पोथी में
बच कर भी जाओगे कहाँ हम जागीरदार इधर के हैं


जो चांदी के मन्दिर में हैं सोने के सिंहासन पर
जो शबरी की कुटिया में हैं वह भगवान किधर के हैं?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें