शनिवार, 27 मार्च 2021

ग़ज़ल 02

 



रह कर भी समन्दर में प्यासी ये मछलियाँ
किस बात पे रहती है उदासी ये मछलियाँ

'राधा' की प्यास हो या 'मीरा' की प्यास हो
हर प्यास एक रंग की प्यासी ये मछलियाँ

पानी के आईने में नया रूप देखतीं
दो पल को खुशगवार रूवासी ये मछलियाँ

हर बार फेंकते है नए जाल मछेरे -
फंसने के लिए आतुर प्यासी ये मछलियाँ

अब रास्ता दिखाती नहीं 'आदि-मनु ' को
हो गई हैं जब से सियासी ये मछलियाँ

गहराइयों में डूब कर भी डूबती नहीं
किस लोक की होती निवासी ये मछलियाँ

वह ढूढती हैं किस को ,किस का पता लिए
किस छोर को जाती हैं प्रवासी ये मछलियाँ

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