सोमवार, 22 मार्च 2021

गीत 05

 कुंकुम से नित माँग सजाए ,प्रात: आती कौन ?

प्रात: आती कौन ?

प्राची की घूँघट अध खोले
अधरों के दो पुट ज्यों डोले

मलय गंध में डूबी-डूबी तुम सकुचाती कौन ?
तुम सकुचाती कौन ?

फूलों के नव-गंध बटोरे
अभिरंजित रश्मियाँ बिखेरे

करती कलरव गान विहंगम तुम शरमाती कौन?
तुम शरमाती कौन?

मन्द हवाएँ   गाती आतीं
आशाओं की किरण जगाती

छम-छम करती उतर रही हो नयन झुकाती कौन?
नयन झुकाती कौन?

लहरों के दर्पण भी हारे
जब-जब तुमने रूप निहारे

पूछ रहे हैं विकल किनारे तुम इठलाती कौन?
तुम इठलाती कौन?
कुंकुम से नित माँग सजाए ....

-आनन्द.पाठक-

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