कुंकुम से नित माँग सजाए ,प्रात: आती कौन ?
प्रात: आती कौन ?प्राची की घूँघट अध खोले
अधरों के दो पुट ज्यों डोले
मलय गंध में डूबी-डूबी तुम सकुचाती कौन ?
तुम सकुचाती कौन ?
फूलों के नव-गंध बटोरे
अभिरंजित रश्मियाँ बिखेरे
करती कलरव गान विहंगम तुम शरमाती कौन?
तुम शरमाती कौन?
मन्द हवाएँ गाती आतीं
आशाओं की किरण जगाती
छम-छम करती उतर रही हो नयन झुकाती कौन?
नयन झुकाती कौन?
लहरों के दर्पण भी हारे
जब-जब तुमने रूप निहारे
पूछ रहे हैं विकल किनारे तुम इठलाती कौन?
तुम इठलाती कौन?
कुंकुम से नित माँग सजाए ....
-आनन्द.पाठक-
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