शनिवार, 27 मार्च 2021

ग़ज़ल 09

 बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन सालिम

फ़ाइलुन---फ़ाइलुन---फ़ाइलुन---फ़ाइलुन
212--------212-----------212-----212
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एक ग़ज़ल

आँधियों से न कोई गिला कीजिए
लौ दिए की बढ़ाते रहा कीजिए

सर्द रिश्ते भी इक दिन पिघल जाएंगे
गुफ़्तगू का कोई सिलसिला कीजिए

दर्द-ए-जानां भी है,रंज-ए-दौरां भी है
क्या ज़रूरी है ख़ुद फ़ैसला कीजिए

मैं वफ़ा की दुहाई तो देता नहीं
आप जितनी भी चाहे जफ़ा कीजिए

हमवतन आप हैं ,हमज़बां आप हैं
दो दिलों में न यूँ फ़ासला कीजिए

आप आएँ न आएँ अलग बात है
पर मिलन का भरम तो रखा कीजिए

आप गै़रों में  इतने न मस्रूफ़ हों
आप ’आनन’ से भी तो मिला कीजिए

-आनन्द.पाठक -

[सं 19-05-18]

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