बह्र-ए-मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम
फ़ऊलुन---फ़ऊलुन---फ़ऊलुन--फ़ऊलुन122--------122--------122----------122
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एक ग़ज़ल
रक़ीबों से क्या आप फ़रमा रहे हैं !
हमें देख कर और घबरा रहे हैं
इलाही! मेरे ये अदा कौन सी है !
कि छुपते हुए भी नज़र आ रहे हैं
उन्हें आईना क्या ज़रा सा दिखाया
वो पत्थर उठाए इधर आ रहे हैं
सुनाया जो उनको ग़मों का फ़साना
वह झुझँला रहे है, वो शरमा रहे हैं
मुहब्बत का हासिल है आह-ओ-फ़ुगाँ बस
ये कह कह के हम को वो समझा रहे हैं
कहानी पुरानी है उल्फ़त की "आनन्"
हमी तो नहीं है जो दुहरा रहे हैं
-आनन्द पाठक-
[सं 19-05-18]
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