शनिवार, 27 मार्च 2021

ग़ज़ल 10

 बह्र-ए-मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम

फ़ऊलुन---फ़ऊलुन---फ़ऊलुन--फ़ऊलुन
122--------122--------122----------122
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एक ग़ज़ल

रक़ीबों से क्या आप फ़रमा रहे हैं !
हमें देख कर और घबरा रहे हैं

इलाही! मेरे  ये अदा कौन सी है !
कि छुपते हुए भी नज़र आ रहे हैं

उन्हें आईना क्या ज़रा सा दिखाया
वो पत्थर उठाए इधर आ रहे हैं

सुनाया जो उनको ग़मों का फ़साना
वह झुझँला रहे है, वो शरमा रहे हैं

मुहब्बत का हासिल है आह-ओ-फ़ुगाँ बस
ये कह कह के हम को वो समझा रहे हैं

कहानी पुरानी है उल्फ़त की "आनन्"
हमी तो नहीं है  जो दुहरा रहे हैं

-आनन्द पाठक-

[सं 19-05-18]

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