2122----1212----22
बह्र-ए-ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़्बून
एक ग़ज़ल : लोग क्या क्या नहीं --
लोग क्या क्या नहीं कहा करते
जब कभी तुमसे हम मिला करते
इश्क़ क्या है ? फ़रेब खा कर भी
बारहा इश्क़ की दुआ करते
ज़िन्दगी क्या तुम्हे शिकायत है
कब नहीं तुम से हम वफ़ा करते
दर्द अपना हो या जमाने का
दर्द सब एक सा लगा करते
हाथ औरों का थाम ले बढ़ कर
लोग ऐसे कहाँ मिला करते
इश्क़ उनके लिए नहीं होता
जो कि अन्जाम से डरा करते
दर्द अपना छुपा के रख ’आनन’
लोग सुनते है बस,हँसा करते
-आनन्द पाठक-
लोग क्या क्या नहीं कहा करते
जब कभी तुमसे हम मिला करते
इश्क़ क्या है ? फ़रेब खा कर भी
बारहा इश्क़ की दुआ करते
ज़िन्दगी क्या तुम्हे शिकायत है
कब नहीं तुम से हम वफ़ा करते
दर्द अपना हो या जमाने का
दर्द सब एक सा लगा करते
हाथ औरों का थाम ले बढ़ कर
लोग ऐसे कहाँ मिला करते
इश्क़ उनके लिए नहीं होता
जो कि अन्जाम से डरा करते
दर्द अपना छुपा के रख ’आनन’
लोग सुनते है बस,हँसा करते
-आनन्द पाठक-
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