रविवार, 28 मार्च 2021

ग़ज़ल 113

 बह्र-ए-रमल मुरब्ब: सालिम

फ़ाइलातुन---फ़ाइलातुन
2122----------2122
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हाथ क्या उन से मिलाते
उँगलियाँ अपनी कटाते

दुश्मनी तो ठीक है ,पर
दोस्ती कुछ तो निभाते

जाग कर सोए हुए -सा
हम तुम्हें फिर क्या जगाते

झूठ ही सच मानते हो
सच की बातें क्या बताते

आइने को  कोसते हो
ख़ुद मुखौटे  हो चढ़ाते

जब तुम्हें सुनना नहीं था
हाल-ए-दिल हम क्या सुनाते

दिल फ़क़ीराना है ’आनन’
मिलते रहना, आते जाते


-आनन्द.पाठक-

सं 29-03-21

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