बह्र-ए-रमल मुसद्दस महज़ूफ़
2122-----------2122---------212-फ़ाइलातुन---फ़ाइलातुन---फ़ाइलुन
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आदमी से कीमती हैं कुर्सियाँ
कर रहे टी0वी0 पे मातमपुर्सियाँ
आग नफ़रत की लगा कर आजकल
सेंकते है अपनी अपनी रोटियाँ
मौसम-ए-गुल कैसे आएगा भला
जब तलक क़ायम रहेंगी तल्खियाँ
धार ख़ंज़र की नहीं पहचानती
किसकी हड्डी और किसकी पसलियाँ
दे रहें धन राशि राहत कोष से
जो जलाए थे हमारी बस्तियाँ
आदमी की लाश गिन गिन कर वही
गिन रहें संसद भवन की सीढ़ियाँ
पीढ़ियों का कर्ज़ ’आनन’ भर रहा
एक पल की थी किसी की ग़लतियाँ
-आनन्द.पाठक-
[सं 09-04-19]
आदमी से कीमती हैं कुर्सियाँ
कर रहे टी0वी0 पे मातमपुर्सियाँ
आग नफ़रत की लगा कर आजकल
सेंकते है अपनी अपनी रोटियाँ
मौसम-ए-गुल कैसे आएगा भला
जब तलक क़ायम रहेंगी तल्खियाँ
धार ख़ंज़र की नहीं पहचानती
किसकी हड्डी और किसकी पसलियाँ
दे रहें धन राशि राहत कोष से
जो जलाए थे हमारी बस्तियाँ
आदमी की लाश गिन गिन कर वही
गिन रहें संसद भवन की सीढ़ियाँ
पीढ़ियों का कर्ज़ ’आनन’ भर रहा
एक पल की थी किसी की ग़लतियाँ
-आनन्द.पाठक-
[सं 09-04-19]
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