2122---2122---2122
फ़ाइलातुन--फ़ाइलातुन--फ़ाइलातुनबह्र-ए-रमल मुसद्दस सालिम
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दुश्मनी कब तक निभाओगे कहाँ तक ?
आग में खुद को जलाओगे कहाँ तक ?
है किसे फ़ुरसत तुम्हारा ग़म सुने जो
रंज-ओ-ग़म अपना सुनाओगे कहाँ तक ?
नफ़रतों की आग से तुम खेलते हो
पैरहन अपना बचाओगे कहाँ तक ?
रोशनी से रोशनी का सिलसिला है
इन चरागों को बुझाओगे कहाँ तक ?
ताब-ए-उलफ़त से पिघल जाते हैं पत्थर
अहल-ए-दुनिया को बताओगे कहाँ तक ?
सब गए हैं ,छोड़ कर जाओगे तुम भी
महल अपना ले के जाओगे कहाँ तक ?
जाग कर भी सो रहे हैं लोग , कस्दन
तुम उन्हें ’आनन’ जगाओगे कहाँ तक ?
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
पैरहन = लिबास ,वस्त्र
ताब-ए-उलफ़त से = प्रेम की तपिश से
अहल-ए-दुनिया को = दुनिया के लोगों को
राह-ए-हक़ हूँ = सत्य के मार्ग पर हूँ
क़सदन = जानबूझ कर
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