मंगलवार, 30 मार्च 2021

ग़ज़ल 139

 212---212---22

फ़ाइलुन--फ़ाइलुन--फ़े’लुन
बह्र-ए-मुतदारिक मुसद्दस मक़्तूअ’ अल आख़िर 
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दिल में  इक अक्स जब उतरा
दूसरा  फिर कहाँ  उभरा

बारहा दिल मेरा  टूटा
टूट कर भी नहीं बिखरा

कौन वादा निभाता  है
 कौन है क़ौल पर ठहरा ?

शम्मअ’ हूँ ,जलना क़िस्मत में
क्या चमन और क्या सहरा

इश्क़ करना गुनह क्यों है ?
इश्क़ पर क्यों कड़ा पहरा

आजतक मैं नहीं समझा
इश्क़ से और क्या गहरा ?

है ख़बर अब कहाँ ’आनन’
वक़्त गुज़रा नहीं  गुज़रा

-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
बारहा = बार बार

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