212---212---22
फ़ाइलुन--फ़ाइलुन--फ़े’लुनबह्र-ए-मुतदारिक मुसद्दस मक़्तूअ’ अल आख़िर
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दिल में इक अक्स जब उतरा
दूसरा फिर कहाँ उभरा
बारहा दिल मेरा टूटा
टूट कर भी नहीं बिखरा
कौन वादा निभाता है
कौन है क़ौल पर ठहरा ?
शम्मअ’ हूँ ,जलना क़िस्मत में
क्या चमन और क्या सहरा
इश्क़ करना गुनह क्यों है ?
इश्क़ पर क्यों कड़ा पहरा
आजतक मैं नहीं समझा
इश्क़ से और क्या गहरा ?
है ख़बर अब कहाँ ’आनन’
वक़्त गुज़रा नहीं गुज़रा
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
बारहा = बार बार
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