मंगलवार, 30 मार्च 2021

ग़ज़ल 142

 


आप से क्या मिले ,फिर न ख़ुद से मिले
उम्र भर को मिले दर्द के  सिलसिले

वो निगाहे झुकीं, फिर उठीं. फिर झुकीं
ख़्वाब दिल में न पूछो कि क्या क्या खिले

तुम गले से लगा लो अगर प्यार से
दूर हो जाएँगे सारे शिकवे  गिले

उसने नफ़रत से आगे पढ़ा ही नहीं
फिर दिलों के मिटेंगे  कहाँ फ़ासिले

’क़ौल’ उनके हैं  कुछ और ’नीयत’ है कुछ
जाने लेकर चले वो किधर क़ाफ़िले

बोलना लाज़िमी था ,ज़रूरी जहाँ
होंठ अपने वहीं लोग क्यों थे सिले ?

 प्यार ’आनन’ लुटाते चलो राह में
क्या पता ज़िन्दगी फिर मिले ना मिले

-आनन्द.पाठक-

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