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फ़ाइलुन--फ़ाइलुन--फ़ाइलुन--फ़ाइलुनबह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन सालिम
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आइने आजकल ख़ौफ़ खाने लगे
पत्थरों से डरे , सर झुकाने लगे
रुख हवा की जिधर ,पीठ कर ली उधर
राग दरबारियों सा है गाने लगे
हादिसा हो गया ,इक धुआँ सा उठा
झूठ को सच बता कर दिखाने लगे
हम खड़े हैं इधर,वो खड़े सामने
अब मुखौटे नज़र साफ़ आने लगे
वो तो अन्धे नहीं थे मगर जाने क्यूँ
रोशनी को अँधेरा बताने लगे
जब भी मौसम चुनावों का आया इधर
दल बदल लोग करने कराने लगे
अब तो ’आनन’ न उनकी करो बात तुम
जो क़लम बेंच कर मुस्कराने लगे
-आनन्द.पाठक-
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