मंगलवार, 30 मार्च 2021

ग़ज़ल 144

 2122---2122----2122-----2122

फ़ाइलातुन--फ़ाइलातुन---फ़ाइलातुन---फ़ाइलातुन
बह्र-ए-रमल मुसम्मन सालिम 
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रोशनी मद्धम नहीं करना अभी संभावना है
 कुछ अभी बाक़ी सफ़र है तीरगी से सामना है

यह चराग़-ए-इश्क़ मेरा कब डरा हैंआँधियों से
रोशनी के जब मुक़ाबिल धुंध का बादल घना है

लौट कर आएँ परिन्दे शाम तक इन डालियों पर
इक थके बूढ़े शजर की आखिरी यह कामना है

हो गए वो दिन हवा जब इश्क़ थी शक्ल-ए-इबादत
कौन होता अब यहाँ राह-ए-मुहब्बत में फ़ना है

जाग कर भी सो रहे हैं लोग ख़ुद से  बेख़बर भी
है जगाना लाज़िमी ,आवाज देना कब मना है

आदमी से जल गया है ,भुन गया है आदमी जो
आदमी का आदमी ही हमसुखन है ,आशना है

दस्तकें देते रहो तुम हर मकां के दर पे’आनन’
आदमी में आदमीयत जग उठे संभावना है

-आनन्द.पाठक-

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