मंगलवार, 30 मार्च 2021

ग़ज़ल 147

  बह्र-ए-ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़्बून महज़ूफ़

2122---1212---22
फ़ाइलातुन---मफ़ाअ’लुन--फ़अ’ लुन
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बात दिल पे लगा के बैठे हैं
हाय ! वो ख़ार खा के बैठे हैं

ज़ख़्म-ए-दिल हम दिखा रहें हैं इधर
वो उधर मुँह फ़ुला के बैठे हैं

ग़ैर को आप का करम हासिल
सोज़-ए-दिल हम दबा के बैठे हैं

देखते हैं कि क्या असर उन पर ?
हाल-ए-दिल हम सुना के बैठे हैं

रुख़ से पर्दा ज़रा हटा उनका
होश हम तो गँवा के बैठे हैं

राह-ए-दिल से कभी वो गुज़रेंगे
हम इधर सर झुका के बैठे हैं

इश्क़ में होश ही कहाँ ’आनन’
खुद ही ख़ुद को भुला के बैठे हैं

-आनन्द,पाठक---

शब्दार्थ
सोज़-ए-दिल = दिल की आग प्रेम की
                  = प्रेमाग्नि

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