बह्र-ए-ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़्बून महज़ूफ़
2122---1212---22फ़ाइलातुन---मफ़ाअ’लुन--फ़अ’ लुन
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बात दिल पे लगा के बैठे हैं
हाय ! वो ख़ार खा के बैठे हैं
ज़ख़्म-ए-दिल हम दिखा रहें हैं इधर
वो उधर मुँह फ़ुला के बैठे हैं
ग़ैर को आप का करम हासिल
सोज़-ए-दिल हम दबा के बैठे हैं
देखते हैं कि क्या असर उन पर ?
हाल-ए-दिल हम सुना के बैठे हैं
रुख़ से पर्दा ज़रा हटा उनका
होश हम तो गँवा के बैठे हैं
राह-ए-दिल से कभी वो गुज़रेंगे
हम इधर सर झुका के बैठे हैं
इश्क़ में होश ही कहाँ ’आनन’
खुद ही ख़ुद को भुला के बैठे हैं
-आनन्द,पाठक---
शब्दार्थ
सोज़-ए-दिल = दिल की आग प्रेम की
= प्रेमाग्नि
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