बह्र मुज़ारे’ मुसम्मन अख़रब मक्फ़ूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊलु---फ़ाइलातु----मफ़ाईलु----फ़ाइलुन221 -----2121-------1221-------212
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आई इधर ख़बर नई कल हुक्मरान से ,
"टी0वी0 पे जो दिखा रहे हैं देख ध्यान से "।
सच बोलना मना है, सियासत का हुक्म है,
कर दूँ जुबान बन्द कि जायेगा जान से ?
खूरेज़ हो रही कहो आदम की नस्ल क्यों ?
क्या है यही नविश्त, मिटेगी जहान से ?
ग़मनाक हो रही है ख़ुदाई तेरी , ख़ुदा !
तू देखता तो होगा कभी आसमान से
जंग-ओ-जदल से कुछ नहीं हासिल हुआ कभी,
निकलेगा कोई रास्ता अम्न-ओ-अमान से ।
हर शख़्स मोतबर नहीं , ना ही अमीन है ,
इक दिन मुकर वो जाएगा अपनी जुबान से ।
’आनन’ तेरे जमीर से हासिल हुआ भी क्या ?
कुछ हैं जमीर बेच के रहते हैं शान से
-आनन्द पाठक-
शब्दार्थ
ग़मनाक = कष्ट्पूर्ण
ख़ूरेज़ = खून बहाने वाला ,ख़ूनी
नविश्त = [भाग्य ] लेख
जंग-ओ-जदल से =युद्ध से
अम्न-ओ-अमन = शान्ति से
मोतबर = विश्वस्त
अमीन =ईमानदार
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