शनिवार, 27 मार्च 2021

ग़ज़ल 15

 मफ़ाईलुन--मफ़ाईलुन--फ़ऊलुन

1222--------1222------122
बह्र-ए-हज़ज मुसद्दस सालिम महज़ूफ़
----------------------------
ग़ज़ल : ग़म-ए-दौराँ से .....

ग़म-ए-दौराँ से मेरी सिलसिला है
तुझे ऐ ज़िन्दगी ! फिर क्या गिला है?

वो जिसके इश्क़ में दिल मुब्तिला है
वो ही पूछे " मुहब्बत क्या बला है "?

 मेरे सर से तुम्हारी आस्ताँ तक
तुम्हीं कह दो कि कितना फ़ासला है ?

तिरे जानिब से तूफ़ान-ए-जफ़ा हैं
मिरे जानिब चिराग़-ए-हौसला है

नज़र आती नहीं मंज़िल कहीं भी
अजब ये ज़िन्दगी का क़ाफ़िला है?

हमें दुनिया से क्या लेना अब "आनन"!
हमें तुम मिल गए , सब कुछ मिला है

-आनन्द.पाठक-

[सं 19-05-18]

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें