2122--1212--112/22
फ़ाइलातुन--मफ़ा इलुन- फ़ इलुन/ फ़अ’लुन
बह्र-ए-ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़्बून महज़ूफ़
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सच कभी जब फ़लक से उतरा है
झूट को नागवार गुज़रा है
झूट को नागवार गुज़रा है
बाँटता कौन है चिराग़ों को
रोशनी पर लगा के पहरा है
ख़ौफ़ आँखों के हैं गवाही में
हर्फ़-ए-नफ़रत हवा में बिखरा है
आग लगती कहाँ, धुआँ है कहाँ
राज़ यह भी अजीब गहरा है
खिड़कियाँ बन्द हैं, नहीं खुलतीं
जख्म फिर से तमाम उभरा है
दौर-ए-हाज़िर की यह हवा कैसी?
सच भी बोलूँ तो जाँ पे ख़तरा है ।
आज किस पर यकीं करे ’आनन’
कौन है क़ौल पर जो ठहरा है ?
-आनन्द.पाठक-
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