गुरुवार, 25 मार्च 2021

माहिया 17

 

 

 

क़िस्त 17

1

दर्या जो उफ़नता है,

दिल में उलफ़त का

रोके से न रुकता है।

 

2

क्या ’क़ैस’ का अफ़साना,

कम तो नहीं जानम,

दिल मेरा दीवाना।

 

3

क्या हाल सुनाऊँ मैं,

तुम से छुपा ही क्या

जो और छुपाऊँ मैं ।

 

4

हो रब की मेहरबानी,

कश्ती सागर की

है पार उतर जानी।

 

5

क्या हुस्न पे इतरना,

मेला दो दिन का,

इक दिन तो ढल जाना।

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें