क़िस्त 19
1
क्यों फ़िक़्र-ए-क़यामत1 हो,
हुस्न रहे ज़िन्दा,
और इश्क़ सलामत हो।
2
ऐसे तो नहीं थे तुम,
ढूँढ रहा हूँ मैं,
जाने न कहाँ हो ग़ुम।
3
जो तुम से मिला
होता,
लुट कर भी मुझको,
तुम से न गिला2
होता।
4
उनको न पता शायद
याद में उनके
हूँ
मैं ख़ुद से जुदा
शायद
5
आलिम है, ज्ञानी है
पूछ रहा फिर
क्या इश्क़ के मा’नी है ?
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