क़िस्त 20
1
दम झूठ का भरते हो,
क्या है मजबूरी,
जो सच से डरते हो ?
2
मालूम तो था मंज़िल,
राहें भी मालूम,
क्यों दिल को लगी
मुश्किल ?
3
करता
भी क्या करता,
पर्दे
के पीछे
इक
और बड़ा परदा।
4
ताउम्र वफ़ा करते,
मिल जाते गर तुम,
फिर हम न ख़ता
करते।
5
ये हाथ न छूटेगा,
साँस भले छूटे,
पर साथ न छूटेगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें