क़िस्त 21
1
जब जब चलती हो तुम,
लहरा कर जुल्फ़ें,
दिल हो जाता है गुम।
2
पर्दा जो उठा लेंगे,
जिस दिन वो अपना,
हम जान लुटा देंगे।
3
चादर न धुली
होगी,
जाने से पहले,
मुठ्ठी भी खुली
होगी।
4
दिल ऐसा हुआ
पागल,
हर आहट समझा
झनकी तेरी पायल
5
पा कर भी है
खोना,
टूटे सपनों का,
फिर क्या रोना-धोना !
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