बह्र-ए-रमल मुसद्द्स महज़ूफ़
फ़ाइलातुन---फ़ाइलातुन-फ़ाइलुन2122--2122---212
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एक ग़ज़ल : जब से उनकी आत्मा है मर गई......
जब से उनकी आत्मा है मर गई
उनके घर उनकी तिजोरी भर गई
चन्द रोटी से जुड़ी मजबूरियाँ
रात ’कोठी" वो गई अक्सर गई
जब गई थाने ’रपट’ करने कभी
फिर न "छमिया" बाद अपने घर गई
फूल ,कलियाँ,तितलियाँ सहमी सभी
जब से माली की नज़र उन पर गई
लाश पर वो रोटियाँ सेंका किए
आदमी की आदमीयत मर गई
हादसे में मरने वाले मर गए
देख-सुन सरकार अपने घर गई
-आनन्द पाठक--
[सं 02-06-18]
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