बह्र-ए-मुज़ारि’अ मुसम्मन अख़रब
मफ़ऊलु--फ़ाइलातुन // मफ़ऊलु-- फ़ाइलातुन
221---2122--// 221----2122
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ग़ज़ल : आते नहीं हैं मुझ को.....
आते नहीं हैं मुझ को ,ये राज़-ए-दिल छुपाने
इज़हार-ए-आशिक़ी के, ढूंढे हैं सौ बहाने
क्या क्या न था सुनाना ,क्या क्या लगे सुनाने
जब सामने वो आए. होश आ गए ठिकाने
नाज़-ओ-ग़रूर इतना , गर हुस्न पे है तुझको
मुझको भी इश्क़ का इक, तुहफ़ा दिया ख़ुदा ने
कुछ तो ज़रूर होगा , इस मैक़दे में , ज़ाहिद !
जो तू भी आ गया है , यां पर किसी बहाने
कहने में आ गये हैं ,वो दुश्मनों की शायद
लो आ गए वो, देखो !, फिर से हमें सताने
क्या क्या सफ़ाई देता , जा कर तेरी गली में
मैं ख़ुद-गरज़ नहीं था , तू माने या न माने
हर्फ़-ए-वफ़ा से वाक़िफ़ ,जो आज तक नही हैं
महफ़िल में आ गए हैं ,मानी हमें बताने
राह-ए-तलाश-ए-हक़ में इक उम्र कटी "आनन"
इक आग सी लगा दी ,किस ग़ैब की निदा ने ?
---आनन्द पाठक-[सं 02-06-18]
221---2122--// 221----2122
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ग़ज़ल : आते नहीं हैं मुझ को.....
आते नहीं हैं मुझ को ,ये राज़-ए-दिल छुपाने
इज़हार-ए-आशिक़ी के, ढूंढे हैं सौ बहाने
क्या क्या न था सुनाना ,क्या क्या लगे सुनाने
जब सामने वो आए. होश आ गए ठिकाने
नाज़-ओ-ग़रूर इतना , गर हुस्न पे है तुझको
मुझको भी इश्क़ का इक, तुहफ़ा दिया ख़ुदा ने
कुछ तो ज़रूर होगा , इस मैक़दे में , ज़ाहिद !
जो तू भी आ गया है , यां पर किसी बहाने
कहने में आ गये हैं ,वो दुश्मनों की शायद
लो आ गए वो, देखो !, फिर से हमें सताने
क्या क्या सफ़ाई देता , जा कर तेरी गली में
मैं ख़ुद-गरज़ नहीं था , तू माने या न माने
हर्फ़-ए-वफ़ा से वाक़िफ़ ,जो आज तक नही हैं
महफ़िल में आ गए हैं ,मानी हमें बताने
राह-ए-तलाश-ए-हक़ में इक उम्र कटी "आनन"
इक आग सी लगा दी ,किस ग़ैब की निदा ने ?
---आनन्द पाठक-
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