2122-----2122------2122------2122
फ़ाइलातुन---फ़ाइलातुन---फ़ाइलातुन---फ़ाइलातुन
बह्र-ए-रमल मुसम्मन सालिम
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सोचता हूँ शहर में अब,आदमी रहता किधर है ?
बस मुखौटे ही मुखौटे जिस तरफ़ जाती नज़र है
दिल की धड़कन मर गई है ,जब मशीनी धड़कनों में
आंख में पानी नहीं है , आदमी पत्थर जिगर है
ज़िन्दगी तो कट गई फुट्पाथ से फुटपाथ ,साहिब !
ख़्वाब तक गिरवी रखे हैं ,कर्ज़ पे जीवन बसर है
हो गईं नीलाम ख़ुशियां ,अहल-ए-दुनिया से गिला क्या
तीरगी हो, रोशनी हो , फ़स्ल-ए-गुल हो बेअसर है
ख़्वाहिश-ए-उलफ़त है दिल में ,आँख में सपने हज़ारों
हासिल-ए-हस्ती यही है ,दिल हमारा दर-ब-दर है
शाम जब होने लगेगी लौट आयेंगे परिन्दे
बस इसी उम्मीद में ज़िन्दा खड़ा बूढ़ा शजर है
आजकल बाज़ार में क्या क्या नहीं बिकता है ’आनन’
जिस्म भी,ईमान भी ,इन्सान बिकता हर नगर है
-आनन्द पाठक
[सं 24-06-18]
bbs 240618
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