शनिवार, 27 मार्च 2021

ग़ज़ल 31

 

ग़ज़ल



ऐसी भी हो ख़बर कभी अख़बार में लिखा
कल इक ’शरीफ़’ आदमी था रात में दिखा


लथपथ लहूलुहान ना हो जाए वो कहीं
आदम की नस्ल आख़िरी को या ख़ुदा! बचा


वो क़ातिलों की बस्तियों में आ गया कहां !
उस पर हँसेंगे लोग सब ठेंगे दिखा दिखा


बेमौत मर न जाए वो मेरी तरह कहीं
इस शहर में उसूल की गठरी उठा उठा


जो हैं रसूख़दार वो कब क़ैद में रहे !
मजलूम जो ग़रीब है वो कब हुआ रिहा !


अहल-ए-नज़र में वो यहां पागल क़रार है
’कलियुग’ से पूछता फिरे ’सतयुग’ का जो पता


जब से ख़रीद बेंच की दुनिया ये हो गई
’आनन’ कहो कि कब तलक ईमान है बचा


-आनन्द.पाठक


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