शनिवार, 27 मार्च 2021

ग़ज़ल 32

 

ग़ज़ल 32

ख़यालों में जब से वो आने लगे हैं
हमीं ख़ुद से ख़ुद को बेगाने लगे हैं

हुआ सर-ब-सज़्दा तिरी आस्तां पे
यहाँ आते आते ज़माने लगे हैं

तिरा अक़्स उतरा है जब आईने में
सभी अक़्स मुझको पुराने लगे हैं

अभी हम ने उनसे कहा कुछ नहीं है
इलाही ! वो क्यों मुस्कराने लगे हैं ?

निगाहों में जिनको बसा कर रखा था
वही आज नज़रें चुराने लगे हैं

वो रिश्तों को क्या ख़ास तर्ज़ीह देते !
जो रिश्तों को सीढ़ी बनाने लगे हैं

है अन्दाज़ अपना फ़कीराना ’आनन’
दुआओं की दौलत लुटाने लगे हैं

-आनन्द.पाठक-
8800927181



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