एक ग़ज़ल : इज़हार-ए-मुहब्बत...
इज़हार-ए-मुहब्बत के हैं मुख़्तार और भी
इस दर्द-ए-मुख़्तसर के हैं गुफ़्तार और भी
ये दर्द मेरे यार ने सौगात में दिया
करता हूं इस में यार का दीदार और भी
कुछ तो मिलेगी ठण्ड यूँ दिल में रक़ीब को
होने दे यूँ ही अश्क़-ए-गुहरबार और भी
आयत रहीम-ओ-राम की वाज़िब तो है,मगर
दुनिया के रंज-ओ-ग़म का है व्यापार और भी
अह्द-ए-वफ़ा की बात वो क्यों हँस के कर गए
अल्लाह ! क्यों आता है एतबार और भी
दहलीज़-ए-हुस्न-ए-यार के ’आनन’ तुम्हीं नहीं
इस आस्तान-ए-यार पे हैं निसार और भी
-आनन्द.पाठक
09413395592
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