बह्र-ए-मुज़ारे’ मुसम्मन अख़रब मक्फ़ूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊलु---फ़ाइलातु---मुफ़ाईलु--फ़ाइलुन221---------2121-------1221-------2122
------------------------------------------
ग़ज़ल 38 : बदली हुई है आप की---
बदली हुई है आप की जो चाल-ढाल है
लगता हर एक बात में कुछ गोलमाल है
दो-चार साल से हैं उसी मोड़ पे खड़े
’सबका विकास’ हो रहा उनका ख़याल है
दरबार में बिछा भी तो कालीन सा बिछा
उस को गुमान ये है कि वो बाकमाल है
शाही कबाब मुर्ग मुसल्लम डकार कर
फिर पूछते हैं देश का क्या हाल चाल है?
जाने हमारे दौर के लोगों को क्या हुआ
जो तरबियत में आ गया इतना जवाल है
ये बात कम नहीं है कि ज़िन्दा है आदमी
हर आदमी के सामने कितना सवाल है
’आनन’ उमीद रख अभी सब कुछ नहीं लुटा
फिर से उठा कि सामने रख्खी मशाल है
-आनन्द पाठक-
[सं 27-10-18]
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें