क़िस्त-51
:1:
सावन की घटा काली,
याद दिलाती है
जो शाम थी मतवाली !
:2:
सावन के वो झूले,
झूले थे हम तुम
कैसे कोई भूले ?
:3:
सावन की फुहारों
से,
जलता है तन-मन
जैसे अंगारों से।
;4:
कब आएगी गोरी ?
पूछ रही मुझ से
मन्दिर की बँधी
डोरी।
5
कुछ मेरी सुन
माहिया,
गाता रहता है
दिल प्यार की
धुन माहिया।
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