क़िस्त 52
:1:
जब प्यार भरे बादल,
सावन में बरसें,
भीगे तन-मन-आँचल।
:2:
प्यासी आँखें तरसी,
बदली तो उमड़ी,
जाने न कहाँ बरसी ?
:3:
जब जब चमकी बिजली,
डरती रहती हूँ,
उन पर न गिरे, पगली !
:4:
चातक की प्यास
वही,
बुझ न सकी अबतक,
इक बूँद की आस
रही।
5
ये दर्द हमारा
है,
तनहाई में ज्यों,
तिनके का सहारा
है।
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