क़िस्त 53
:1:
क़िस्मत की बातें
हैं,
कुछ को ग़म ही ग़म,
कुछ को सौग़ातें हैं।
:2:
कब किसने माना है,
आज नहीं तो कल,
सब छोड़ के जाना है।
:3:
कब तक भागूँ मन
से,
देख रहा कोई
छुप छुप कर
चिलमन से।
:4:
कब दुख ही दुख
रहता,
किस के जीवन में,
बस सुख ही सुख
रहता ?
5
लगनी है तो लगती,
आग मुहब्बत की
लगने पे नही
बुझती।
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