क़िस्त 54
:1:
शिकवा न शिकायत है,
जुल्म-ओ-सितम तेरा
क्या ये भी रवायत है?
:2:
यह ज़ोर-ए-सितम1तेरा,
कैसा है जानम !
निकला ही न दम मेरा।
:3:
जो होना था सो
हुआ,
अहल-ए-दुनिया से
छोड़ो भी गिला
शिकवा।
:4:
इतना ही बस माना,
राह-ए-मुहब्बत से,
घर तक तेरे जाना।
5
यादें कुछ सावन
की,
तुम जो नहीं आए,
बस एक व्यथा मन
की।
1 अत्याचार
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