शुक्रवार, 26 मार्च 2021

माहिया 54

 क़िस्त 54

:1:

शिकवा न शिकायत है,

जुल्म--सितम तेरा

क्या ये भी रवायत है?

 

 :2:

यह ज़ोर-ए-सितम1तेरा,

कैसा है जानम !

निकला ही न दम मेरा।

 

  :3:

जो होना था सो हुआ,

अहल--दुनिया से

छोड़ो भी गिला शिकवा।

 

 :4:

इतना ही बस माना,

राह--मुहब्बत से,

घर तक तेरे जाना।

 

5

यादें कुछ सावन की,

तुम जो नहीं आए,

बस एक व्यथा मन की।

 

 1 अत्याचार

 

 

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