अब तो उठिए,बहुत सो लिए
खिड़कियां तो ज़रा खोलिएसोच में है हलाहल भरा
फिर कहाँ तक शहद घोलिए
बात सुनिए मेरी या नहीं
प्यार से तो ज़रा बोलिए
लोग क्या क्या हैं कहने लगे
गाँठ मन की तो अब खोलिए
दोस्ती मे तिजारत नहीं
इक भरोसे को मत तोलिए
जो मिला प्यार से हम मिले
बाद उसके ही हम हो लिए
हाल ’आनन’ का क्या पूछना
दाग़ दिल पर थे कुछ,धो लिए
-आनन्द.पाठक
[सं 30-06-19]
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