आज फिर से मुहब्बत की बातें करो
दिल है तन्हा रफ़ाक़त की बातें करोये हवाई उड़ाने बहुत हो चुकीं
अब ज़मीनी हक़ीक़त की बातें करो
माह-ओ-अन्जुम की बातें मुबारक़ तुम्हें
मेरी रोटी सलामत की बातें करो
जो दिखाया वो टी0वी0 पे जन्नत दिखी
दौर-ए-हाज़िर सदाक़त की बातें करो
फेकना यूँ ही कीचड़ मुनासिब नहीं
कुछ मयारी सियासत की बातें करो
ये अक़ीदत नहीं ,चापलूसी है बस
गर हो ग़ैरत तो ग़ैरत की बातें करो
बाद मुद्दत के आए हो ’आनन’ के घर
पास बैठो ,न रुख़सत की बातें करो
-आनन्द.पाठक
शब्दार्थ
माह-ओ-अन्जुम की बातें = चाँद तारों की बातें
मुनासिब = उचित
मयारी =स्तरीय standard
्दौर-ए-हाज़िर = वर्तमान समय
सदाक़त =यथार्थ ,सच्चाई
अक़ीदत = किसी के प्रति शुद्ध निष्ठा
[सं 30-06-19]
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