122---122---122---122
अगर आप जीवन में होते न दाखिल
कहाँ ज़िन्दगी थी ,किधर था मैं गाफ़िल
न वो आश्ना है ,न हम जानते हैं
मगर एक रिश्ता अज़ल से है हासिल
नुमाइश नहीं है ,अक़ीदत है दिल की
ये उलफ़त भी होती इबादत में शामिल
हज़ारों तरीक़ों से वो आजमाता
खुदा जाने कितने हैं बाक़ी मराहिल
मसीहा न कोई ,न कोई मुदावा
कहाँ ले के जाऊँ ये टूटा हुआ दिल
जो पूछा कि क्या हैं मुहब्बत की रस्में?
दिया रख गया वो हवा के मुक़ाबिल
इसी फ़िक़्र में उम्र गुज़री है "आनन’
ये दरिया,ये कश्ती ,ये तूफ़ां ,वो साहिल
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
मराहिल =पड़ाव /ठहराव [ ब0ब0 - मरहला]
आशना =परिचित /जान-पहचान
अज़ल से = अनादि काल से
अक़ीदत = दृढ़ विश्वास
मुदावा =इलाज
[सं 30-06-19]
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