रविवार, 28 मार्च 2021

ग़ज़ल 75

 फ़ाइलातुन---फ़ाइलातुन--फ़ाइलुन

2122----2122---212
रमल मुसद्दस महज़ूफ़
--------

वो जो राह-ए-हक़ चला है उम्र भर
साँस ले ले कर मरा है  उम्र भर

जुर्म इतना है ख़रा सच बोलता 
कठघरे में जो खड़ा है  उम्र भर

उम्र भर सब पर यकीं करता रहा
अपने लोगों  ने छला है उम्र भर

मुख्य धारा से अलग धारा है यह
खुद का खुद से सामना है उम्र भर

घाव दिल के जो दिखा पाता ,कभी
स्वयं से कितना  लड़ा  है उम्र भर

राग दरबारी नहीं है गा सका
इसलिए सूली चढ़ा  है उम्र भर

झू्ठ की महफ़िल सजी ’आनन’ जहाँ
सत्य ने पाई सज़ा  है उम्र भर

-आनन्द पाठक-
~

[सं 30-06-19]

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें