कहाँ तक रोकता दिल को कि जब होता दिवाना है
ज़माने से बगावत है , नया आलम बसाना है
मशालें इल्म की लेकर चले थे रोशनी करने
जो अबतक ख़्वाब में खोए ,उन्हे तुम को जगाना है
यूँ जिनके शह पे कल तुमने एलान-ए-जंग तो कर दी
कि उनका एक ही मक़सद ,तुम्हें मोहरा बनाना है
धुँआ आँगन से उठता है तो अपना दम भी घुटता है
तुम्हारा शौक़ है या साज़िशों का ताना-बाना है
लगा कर आग नफ़रत की सियासी रोटियाँ सेंको
अरे ! क्या हो गया तुमको जो अपना घर जलाना है
-" शहीदों की चिताऒं पर लगेंगे हर बरस मेले "-
यहाँ की धूल पावन है , तिलक माथे लगाना है
तुम्हारे बाज़ुओं में दम है कितना ,जानता ’ आनन’
हमारे बाजुओं का ज़ोर अब तुमको दिखाना है
-आनन्द.पाठक-
[सं 30-06-19]
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