गुरुवार, 1 अप्रैल 2021

अनुभूतियाँ 10

 अनुभूतियाँ : क़िस्त 10

1

इतना साथ निभाया तुमने

चन्द बरस कुछ और निभाते

कौन यहाँ पर अजर-अमर है

साँस आख़िरी तक रुक जाते

 

2

सब माया है, सब धोखा है 

ज्ञानीजन ने कहा सही है

फिर भी मन है बँध बँध जाता 

दुनिया का दस्तूर यही है

 

3

अपनी अपनी लक्ष्मण रेखा

सबकी अपनी सीमाएँ हैं

घात लगा कर बैठी  दुनिया

पाप पुण्य की दुविधाएँ हैं

 

4

नोक-झोंक तो चलती रहती 

उल्फ़त की यह अदा पुरानी

बात बात में रूठ के जाना

गहन प्रेम की यही निशानी


-आनन्द.पाठक-

 


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