गुरुवार, 1 अप्रैल 2021

अनुभूतियाँ 09

 

कुछ अनुभूतियाँ : क़िस्त 09

33
कोई सफ़र नही नामुमकिन
उम्मीदों के दीप जलाना
अगर कभी लगता हो तुमको
हिम्मत दिल में सदा जलाना

 
34
प्रथम मिलन की यादें बाक़ी
आई थी तुम नज़र झुका कर
जाने किसकी  नज़र लग गई
चली गई तुम बाँह छुड़ा कर
 
35
वैसे थी तो बात ज़रा सी  
तुम ने तिल का ताड़ बनाया
ख़ता किसी की, सज़ा किसी को
मेरे सर इलजाम लगाया
 
36
बिना बताए चली गई तुम
 दिल के टुकड़े चुन कर जाती
मेरी थी क्या क्या  मजबूरी
 वह भी तो कुछ सुन कर जाती

-आनन्द.पाठक--

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