ग़ज़ल 167
1222---1222---1222---1222-
मुहब्बत में दिवानों को नसीहत क्या ! हिदायत क्या !
अलग दुनिया में रहते हैं ,जमाने को शिकायत क्या !
रखा जिस हाल में मुझको कोई होता तो रो देता
मिली जो भी ख़ुशी थोड़ी तो हँसने में किफ़ायत क्या !
जो बन कर पेड़ जंगल के, थपेड़े वक़्त के सहते
जुड़े अपनी जड़ो से है तो फिर उनकी हिफ़ाज़त क्या !
जो ज़िन्दा क़ौम होती हैं ,जमाने को बदल देती
कि मुर्दा क़ौम से होगी भला कोई बग़ावत क्या !
शहीदों ने कटाए सर कि उअन्के शौक़ थे अपने
किसी की मेह्र्बानी क्या ,किसी से लें इजाज़त क्या
किसी के इश्क़ में डूबा सदा रहता है दिल अपना
किया ख़ुद को समर्पण तो इबादत क्या ! जियारत क्या !
हमारे हौसले अपने, हमारे रास्ते अपने
अलग दुनिया है ’आनन’ की ,कोई हर्फ़-ए-इनायत क्या
-आनन्द पाठक-
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