क़िस्त 65
257
प्यार भरी बातें करनी थी
लेकिन वह भी मौसम बीता
कल तक दिल में सौ बातें थीं
आज वही घट रीता रीता
258
उन बातों की बात न करनी
सुन कर दिल हो जाए भारी
और किसी दिन मिल बैठेंगे
सुन लेंगे फिर व्यथा तुम्हारी
लेकिन वह भी मौसम बीता
कल तक दिल में सौ बातें थीं
आज वही घट रीता रीता
सुन कर दिल हो जाए भारी
और किसी दिन मिल बैठेंगे
सुन लेंगे फिर व्यथा तुम्हारी
259
माया की सब ये माया है
दलदल में तुम फ़ँसते जाते
ऐसा क्यों है तुम भी सोचो
फिर भी हम सब हँसते जाते
260
स्वांग रचाए तुमने कितने
फिर भी खुद को ना चल पाए
सच का केवल एक रूप है
झूठ कहाँ कब तक चल पाए
-आनन्द.पाठक-
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