क़िस्त 100
397
जिस दिन ज्वार उठेगा मन में
साहिल तक लहरें आएँगी
चुपके चुपके दिल की बातें
साहिल से कह कर जाएँगी
398
जो बीता, सो बीत गया अब
ग़लत-सही की बातें छोड़ो
कुछ ख़ूबी मुझमे दिख जाती
तुम जो अगर यूँ मुँह ना मोड़ो
399
अपनी मरजी की मालिक तुम
इस पर मैं क्या कह सकता हूँ
अगर लिखी होगी तनहाई
तनहा भी मैं रह सकता हूँ
400
’अनुभूति’ यह नई नहीं है
हर मन की यह एक व्यथा है
सूरज उगने से ढलने तक
सुख-दु:ख की यह एक कथा है
-आनन्द.पाठक-
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समाप्त
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