मंगलवार, 31 अगस्त 2021

अनुभूतियाँ 100

 क़िस्त 100


397

जिस दिन ज्वार उठेगा मन में

साहिल तक लहरें आएँगी

चुपके चुपके दिल की बातें

साहिल से कह कर जाएँगी


398

जो बीता, सो बीत गया अब

ग़लत-सही की बातें छोड़ो

कुछ ख़ूबी मुझमे दिख जाती

तुम जो अगर यूँ मुँह ना मोड़ो


399

अपनी मरजी की मालिक तुम

इस पर मैं क्या कह सकता हूँ

अगर लिखी होगी तनहाई

तनहा भी मैं रह सकता  हूँ


400

’अनुभूति’ यह नई नहीं  है

हर मन की यह एक व्यथा है

सूरज उगने से ढलने तक

सुख-दु:ख की यह एक कथा है


-आनन्द.पाठक-


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समाप्त


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