मंगलवार, 31 अगस्त 2021

अनुभूतियाँ 99

 किस्त 99


393

इतना तो मालूम नहीं है

खुशियाँ कब आतीं ,कब जातीं

लेकिन मेरी तनहाई में

यादें तेरी साथ निभातीं


394 

कैसे हाथ बढ़ाते तुम तक

हाथ हमारे कटे हुए थे

वक़्त के हाथों कौन बचा है

हम अन्दर से बँटे हुए थे


395

एक द्वन्द चलता रहता है

आजीवन इस मन के अन्दर

पाप-पुण्य क्या, ग़लत-सही क्या 

मन उलझा रहता जीवन भर


396

किसको ढूँढ रहा हूँ मैं ,क्यों ?

जिसको ढूँढ न पाए ग्यानी

लेकिन सब की प्यास एक है

सदियों की ,जानी पहचानी

-आनन्द.पाठक-

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