मंगलवार, 31 अगस्त 2021

अनुभूतियाँ 98

 क़िस्त 98


389

जीवन भर चलता रहता है

एक तमाशा मेरे आगे

आ जाती है नींद किसी को

कोई कहीं सुबह में जागे


390

क़तरे से है बना समन्दर

या कि समन्दर में भी क़तरा 

एक दिवस जब मिल जाना है

फिर क्यों है जिस्म का पहरा


391

आँख मिचौली सुख-दु:ख की है

हार-जीत का बस खेला है

जीवन क्या है ? आना-जाना

चार दिनों का बस  मेला  है 


392

ग़म के पल में ही पलते हैं

आने वाले कल के सपने

साथ पता भी चल जाता

कौन पराया ,कौन हैं अपने

-आनन्द.पाठक-


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