क़िस्त 97
385
धुआँ भर गया है कमरे में
खोल खिड़कियाँ दरवाजे सब
वरना घुट-घुट मर जायेगा
नई हवाएँ आने दे अब
386
याद नहीं अब कुछ रहता है
सुबह हुई या शाम हुई है
कौन गया है, कौन आया है
हस्ती किसके नाम हुई है
387
ख़ामोशी में कौन छुपा है
आँखों से बोला करता है
दर्द तुम्हारा तुम से पहले
आँसू में घोला करता है
388
इश्क़ हक़ीक़ी, इश्क़ मजाज़ी
एक इश्क़ के पहलू दो हैं
फ़र्क़ नहीं फिर रह जाता है
एक जगह जब मिलते वो हैं
-आनन्द.पाठक-
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